Monday, August 8, 2011

मजाक .....




चंद आंसू कुछ उदासी, 
चेहरे की फीकी मुस्कान 
सच नहीं थी क्योंकि 
हो न पाई थी पहचान ..

जब उसने मुझे बुलाया था ...
नहीं नहीं ..
मुझे अपने आप से भुलाया था ...
हम भी तमाम आशाओ को लेकर ..
कह गये उन पर बहुत कुछ .... 
जो कल तक उसने भी स्वीकारा था .

एक सच्चे दोस्त का 
मात्र प्यार भरा कल्पना का कागज़ ..
रोंदा गया था वक्त के पहिये के नीचे ...

कर्तव्य विमुढ मन लिए 
नीरस मन के साथ ..
चल पड़ा था अँधेरी राहों में ...

जब आँख थी गीली ...
तब उसने कहे थे वो शब्द  ..
 जो अमृत बनकर 
घुल गए थे मन आत्मा में ..

मै रह गया था एकदम अवाक  !!! 
मन खुशी से था प्रफुल्लित .....
पर अगले ही क्षण गिरी थी बिजली .....
जब उसने कहा मैंने तो किया था 


सिर्फ एक मजाक ....!!

...मजाक !!!





दोस्ती .....


याद आ  गए वो बीते दिन ..
वो सुंदर संग और हसीं पलछिन ...

याद आते है वो सभी दोस्त ..
जो न रहते थे कभी एक दूजे के बिन ...

आओ फिर से मिल जाएँ .....
फिर एक नई दुनिया बसाये ...

हो जहाँ हर पल ख़ुशी का आलम ....
गूंजे हंसी ठट्ठा ..और भूले सभी गम ..

जिसमे हरेक की भावनाओं  का हो समुंदर ..
प्यार, श्रधा, विश्वास और दोस्ती का रहे हमेशा मंजर ..

दोस्तों के बिना अधूरी है जिंदगी ...
समझो तो सब कुछ है दोस्ती ....
न समझो तो कोरी है दोस्ती ..

गर समझ गए तो आ जाओ फिर से ..
ये पल जो जा रहा है .....
नहीं आएगा फिर से .....

न रहे मलाल की न मिले दोस्तों से ....
कुछ  पल तो बिता दिए बगैर उनके ....
अब बस  रह गए......
सिर्फ कुछ पल ज़िन्दगी के.....

(मित्रता दिवस पर मित्रों को भेंट ...)...

रेनू मेहरा  ८/८/२०११ 

Saturday, August 6, 2011

बेवफाई ..


किस से करें शिकायत ..
करें किस से गिला वो ..
न उसे थी परवाह तेरी
और न ही है गमजदा वो ..
वो है मगरूरी मे अपनी
कि खुदाया बन गया वो ..
चेहरे पे नकाब ओडे है
कितना शरीफ बंदा वो ..
सोचा था न कुछ कहेंगे ..
पर चुप भी रहा जाता नहीं ..
दिल मे नश्तर इतने चुबाये 
कि अब सहा भी जाता नहीं ...
दम वो भरता रहा अपनी दोस्ती का 

और दूजे हाथ मे पकड़ा रहा
हाथ किसी और महजबी का ....
वाह क्या दोस्ती निभाई उसने ...
और वो कहती रही ..

दिया आपने स्थान अपने गुलशन मे ....?

Thursday, August 4, 2011

स्याही ...


लिखने की सोची एक  प्रेम पाती ..
सोचा पढवा उंगी  तुम्हे एक दिन ..
तुम उसमे भरोगे  अपनी चाहत के रंग ..
और बिखेर दोगे  खुशबु वफ़ा की  ..

ऐसी स्याही बनेगी जो लिखेगी
हमारी वफ़ा की कहानी ..
पर ये क्या हुआ ..
वो दवात ही उल्ट गई ..
बिखर गई स्याही ..


कलम सुखी पड़ी है ..
दवात  टूटी पड़ी है ...
कागज़ वो प्रेम का ..
कोरा  का कोरा  ही रह गया है..

तुम्हे तो कोई और रंग चढ़ने लगा है ..
तूम रंगने लगे हो उस के रंग में ...
जिसके लिए झूट बोला गया है ...
सच्चाई  की कसमे खाई थी जिसकी
आज वो ही शक्स् झूटी कसमे खाने लगा है ..

मन बावला हो रहा है
कि ये सब क्या हो रहा है ...

क्यूँ मेरा कागज कोरा रह गया है ..
क्यूँ वो स्याही न बन पाई .
जिसमें तुम्हारी वफाओ का रंग चढ़ा है ..

--रेनू --- 
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