चंद आंसू कुछ उदासी,
चेहरे की फीकी मुस्कान
सच नहीं थी क्योंकि
हो न पाई थी पहचान ..
जब उसने मुझे बुलाया था ...
नहीं नहीं ..
मुझे अपने आप से भुलाया था ...
हम भी तमाम आशाओ को लेकर ..
कह गये उन पर बहुत कुछ ....
जो कल तक उसने भी स्वीकारा था .
एक सच्चे दोस्त का
मात्र प्यार भरा कल्पना का कागज़ ..
रोंदा गया था वक्त के पहिये के नीचे ...
कर्तव्य विमुढ मन लिए
नीरस मन के साथ ..
चल पड़ा था अँधेरी राहों में ...
जब आँख थी गीली ...
तब उसने कहे थे वो शब्द ..
जो अमृत बनकर
घुल गए थे मन आत्मा में ..
मै रह गया था एकदम अवाक !!!
मन खुशी से था प्रफुल्लित .....
पर अगले ही क्षण गिरी थी बिजली .....
जब उसने कहा मैंने तो किया था
सिर्फ एक मजाक ....!!
...मजाक !!!