Thursday, December 15, 2011

पीड़ा ...




मेरी खामोशियाँ अब डसने लगी है 
जो चहकने  को आतुर थी ..
वो आवाज खामोश है ..

ये होंठ अब नहीं हँसते ..
मुस्कुराना भुल गए है .
कंपन है इनमे ...
आवाज खो गई कहीं ..

क्या लौटा पाओगे तुम 
वो हंसी मेरे चेहरे पे ..
वो खुशी  मेरी आँखों मे ...

अब यहाँ सिर्फ दर्द, पीड़ा है 
न भुल सकने की  कसक ..

हाथो की रेखाये  मिटने लगी 
जिनमे लकीरे थी 
अनंत उत्साह ,उल्लास की ...
जिंदगी जीने की  उमग ..

अब सिर्फ गहरी उदासी है ..
एक इन्तजार ..
जो कभी खतम न हो ..
शायद ..!!!!

Sunday, December 4, 2011

आज देव आनंद साहब हमारे बीच नहीं रहें ...


उनके जीवन मे एक वक्त  ऐसा भी आया जब उन्होंने 
इस गाने को अपने दिल के बहुत करीब पाया ओर बखूबी परदे पर निभाया भी ..
उन्ही के उस गाने को प्रस्तुत कर रही हूँ .....



देव साहब को श्रधांजलि ....



दिन ढल जाए हाय, रात ना जाए..
तू तो ना आये तेरी याद सताए..

दिन ढल जाए हाय, रात ना जाए..
तू तो ना आये तेरी याद सताए..

प्यार में जिनके सब जग छोड़ा और हुए बदनाम..
उनके ही हाथों हाल हुआ ये बैठे हैं दिल को थाम..
अपने कभी थे अब हैं पराये..
दिन ढल जाए हाय, रात ना जाए..
तू तो ना आये तेरी याद सताए..
दिन ढल जाए...

ऐसी ही रिमझिम, ऐसी फुहारें, ऐसी ही थी बरसात..
खुद से जुदा और जग से पराये हम दोनों थे साथ..
फिर से वो सावन अब क्यूँ न आये..
दिन ढल जाए हाय, रात ना जाए..
तू तो ना आये तेरी याद सताए..
दिन ढल जाए...

दिल के मेरे पास हो इतने फिर भी हो कितनी दूर..
तुम मुझसे मैं दिल से परेशान, दोनों हैं मजबूर..
ऐसे में किसको कौन मनाये..
दिन ढल जाए हाय, रात ना जाए..
तू तो ना आये तेरी याद सताए..

दिन ढल जाए...!!!

Saturday, November 26, 2011

कीमत .....

         


                                          

तेरे शहर मे आने की कीमत ये चुकाई ......
                दोस्तो को गँवाया हर शय पे मात खाई.......


             
हर दर तेरा अंजान बना.....जो था मेरी खातिर......|
                नई दीवारे लगाकर तुने पहचान छुपाई......


करते थे जिस पे रशक ....वही ले डुबे हमे आज .....
                हर बात पे किया शक , कई तोहमते लगाई......




  बन अनजान  खुश है वो गैरो की महफ़िल  मे ..
                 हमने तो  इन्तजार मे शमा रात भर जलाई ...




  वक्त की डाल से टुटा हुआ लम्हा हूँ आज मै ..
                अब सुख कर चरागे रौशनी है जलाई ....




   या  खुदा रहम कर....तेरी बस्ती के लोगो पर.....
                      अंजान जान मुआफ कर........
                         दुहाई है दुहाई.......




रेनु मेहरा ....<3<3<3
                     

Wednesday, November 23, 2011

सीने मे मेरे आज भी दफन हैं कई राज ...
भुलाए नहीं भूलती है वो तेरी कही बात ...
याद आती है बरबस मुझे वो एक शाम ..
जब मिले मुझे वो जख्म उम्रभर के नाम ...

---रेनू ---
१६/११/२०११



करके बहाना चाँद चुप गया
तारे भी चले सजाने  अपनी बारात ..
मै बैठी रही तकती "तुझे "ऐ मेरे खुदा ..
तू भी कहीं न नजर फेर ले ...

--रेनू ...

जो मिल जाए कहीं तुम्हे वो( जिंदगी )...
उसे मेरे घर का पता दे देना ...
कहना ....
तेरी आरजू मे वक्त
तमाम किये जाते हैं ...
तुझे पाने की हसरतो मे
उम्र गुजार दी हमने ...
अब तो  दीदार की तेरे
तमन्ना लिए जाते हैं ...


रेनू ..
बाद मुद्दत के निकली 
बात महफिल मे....
वो न आए तो क्या....
जिक्र तो उनका ही है.....




जो तुने पता लेना छोङ दिया.....
हवाओ ने भी रुख अपना मोङ लिया.....




है नाज़ तेरी अदाओ पर.....
है फक्र तेरी वफाओ पर.....
तेरी बेफिक्री न रास आई मुझे ....
घुट रही सांसे इन मस्त फिजाओं मे ...




तेरे अक्स से बेजार हुए मुद्दत गुज़र ग ई.....
फिर भी क्यूँ लगे तू है यहीं कही......




कहते हैं के गुजरा वक्त वापस नहीं आता ....
तो यादो के साये क्यूँ लौट के आ जाते हैं ....
क्यूँ नहीं ये तनहा छोड़ जाते हमें इन राहों मे ...
बस ये ही क्यूँ पलट के आते  हैं ...(यादे )..




बैठे हैं इंतजार मे सहर के होने तक.....
झलक भर तेरी... मेरा नसीब बन जाऐ......




करके वादे युँ मुकर जाते हैं लोग.....
नये आशियाने सजा लेते हैं लोग.......
जिन गलियो में था आना जाना हरदम.....
उन्ही पे खाक उङा जाते हैं लोग.......


दिल मे अरमानो मे सजा रखे  है......
तेरी यादो के मखमली पैबंद......




माना कि तेरे चाहने वाले हैं हजार यहाँ.......
पर मुझ सा न होगा कभी तेरी किस्मत में........


तेरी बेवफाई ने इस कदर जकङा .....
के अब वफा से डर लगता है..


माना के तू बेवफा नहीं ..
पर निभाई तो तुने वफ़ा भी नहीं ..
इल्जाम लगाकर मुझपे रुसवाई का ..
तू खुद रहा बेमुरवत कहीं ...


तेरे ख्याल मे गुजरते हैं मेरे दिन ओ रात 
एक तू ही बेखबर रहा 
मेरे ख्याल से ....


जो इंसा रब हो गया ..
तो खुदा जाने क्या होगा ..
खुदा खुद जमीं पर ....
ओर इंसान आसमाँ पे होगा ..
मेरा अक्स
उसे तुझमे नजर आया ..

इसलिए मुझे छोड़ ..
वो तेरे पास चला आया ...

नहीं गम के नहीं
कोई पास मेरे ...
है फ़िक्र अब तो ..

कब तलक रहे
उसका तेरे संग
साया ....

रेनू ....



वो दिन ...


वो पल ..


वो यादें ..


वो लम्हे ...


भुलाए नहीं भूलते हमको ..


वो खुशी ..


वो आंसू ...


वो गम के साये ..


अब तेरे हिस्से आने लगे है ...


--रेनू ---०१.११.०२११
जब भी निकली घर से बाहर ..
देखा तुझे गली के  नुक्कड़ पर ..


मेरे घर के तो दरवाजे खुले थे ..
पर तुने ही बंद किया हर दर ....


यहाँ वहाँ ..सब जगह ..
है तेरा आना जाना ..


जिस दर को पूजा तुने मंदिर
वोही हुआ आज तेरे लिए बेगाना ...


पत्थरों मे भगवान् पूजा ...
नर मे न् ढूंड पाया इंसान ...


कैसी हुई तेरी मति ...
न नर मिला न भगवान ....


रेनू मेहरा ...
October 1 ,2011



 कदम तुम्हारे बढ़ चले तलाशने नई राहे ...


हम अब भी उसी मोड पर खड़े हैं ...


बने  मुसाफिर नए  हमराही तेरे ..


हम अब भी तनहा तनहा खड़े हैं ...




रेनू ..
October 2 at 5:54pm
रस्ते वीरान , सफर तनहा ..
लोगो का यूँ मिलना बिछडना ...


रास आया नहीं हमको ये सफर ..
हम भी रहें यहाँ तनहा तनहा ....


खूबियां जो थी तेरे गुलशन की ..
नहीं नजर आती अब मुझे ....


सब सुखा बेजान दीखता है ..
नही है रस रहा फूलो मे ...


तेरे बागबान मे माली न रहा ...
तू है सुखा पत्ता ...टुटा सा ...


जो था गुलशन तेरा महका महका ...
मेरे बिन अब वो सुना रहा ...


रेनू मेहरा .....०३/१०/२०११
वो चुप हैं के कोई आहट न होने पाये ...
उनके दिल की धडकन न कोई सुनने पाये ....


हैं तन्हाइयों से लिपटे वो इस कदर ...
के महफ़िल मे खुद को तनहा पाये .....


रेनू ...०३/१०/२०११०




हर आहत पे लगता है ..
तू है यही कहीं ...


दम भर जो तुझे देखू ...
कहीं मर ही न् जाऊ ....


दिल बहुत संभाला ..
संभल नहीं पाया ...


तेरी एक झलक को ..
मचल मचल जाऊं ...


तेरा दीदार ही अब सबब है जीने का ...
कहीं उसे पहले ही मै न् गुजर जाऊ ...


रेनू ...०३/१०/२०११
एक मेरा भरोसा ही था ...
जो जीता तुमने ....


आज खंडित हुआ वो भी ...
पराया सा लगने लगा ....


ये शब्द घुल रहा गर्म मोम बनकर ...
जल रही आत्मा ओर मेरा मन..


भरोसा न् अब हो सकेगा फिर से ...
क्यूंकि ये शब्द आज से गूंगा हुआ ....


रेनू ...०४.१०.२०११

तेरे इन्तजार मे शमा रात भर जलाई ....
न तू आया ..न तेरी याद आयी ...
एक खयाल ही दे दे मुझको उम भर के लिए ..
मेरी जान न् ले ले ये तेरी रुसवाई ...



ये रहा वक्त का तकाजा ...
या मुकद्दर का सिला ....
हर किसी की जिंदगी मे...
कोई न् कोई गिला ..




तेरे वादों पे कुछ इस कदर  ऐतबार कर लिया ...
के हमने तुमसे ही प्यार कर लिया ....

पैगाम ...

लिखी चिठ्ठी उसने ....
सबको पैगाम भेजा ...
खत मे सबको दुआ - सलाम भेजा ..


न् भेजा तो मुझे कुछ भी ...
न दुआ न ऐहतराम भेजा ...


पते मे लिखा सबका नाम ...
मेरा नाम ही गुम था उसमे ...


मायूस हो उठी मै कई मर्तबा ...
जब न् देखा अपना नाम उसमे  ...


न आया उनका  कोई खत...
न  उनका सलाम  आया ...


हर बार सोचा के
अब शायद कहीं
मेरा जिक्र   आया ...


कुछ नहीं था मेरी खातिर ..
चंद टुकडो मे भी न
मेरा  नाम आया ..


फिर भी ...मेरे दोस्त
जाने क्यों मेरी ही जुबा पे
हरदम उसका नाम आया ....


रेनू ..४/१०/११
बनाया एक आशियाना ...
ईंट ओर पत्थरों से ....


तेरे आने से महका ..
मेरा बागबान ...


प्यार से सहेजा तुमने
इस बगिया को ...


सजाया गुलशन है ...
प्यारे नन्हे फूलो से ...


जो है हमारे ही अंश ...
बन छायाधार वृक्ष
तुम देना छाया सबको ....


मेरा घर महका देना .
तुम अपनी खुशबु से ....


--रेनू ..०५.१०.२०११
ये रात और ये तन्हाई ...
न हमको रास आई ...


डसने लगी ये गहरी काली रात ...
अजनबी से साये हमें है डराए ...


नीद भी हुई बेवफा ...
करे किस से हम गिला ...


न आयेंगे कहकर तुम गए ...
आये भी दबे पाँव ..
और यहीं आस पास रहें ...


न आने का तो बहाना था ..
तुमने भी कहाँ जाना था ...


बिन आये चैन नहीं तुमको ...
शक्ल न् दिखाना तो सिर्फ एक बहाना था ..


मालूम है हकीकत कुछ और है ...
ये साये भी मेरे नहीं ..


सिर्फ डराने को दीखते हैं ...
मेरे वहम मुझे ही डसते हैं ...


रेनू ....०७.१०.२०११
जीवन के है कई रूप ..
कभी छाँव है तो है कभी धुप ...
कभी सुख की ठंडी बयार है
कभी दुखो का भण्डार है ..


सम रहना ही सिखाता है ..
जीवन का जो ये सार है ...


विकट रूप जो देख रहे ...
प्रभु को सिमरन सब कर रहे ...


देना सबको तुम अपना आशीष....
करन कल्याण जगत का तुम हे ईश !!!!!!


रेनू ....१३.१०.२०११
डूबी थी दुनिया के रंग मे ...
तुने वो रंग दिखलाया ...
भूली अब दुनिया को ..
तेरे रंग मे रंगने को दिल चाहा ...


एक पल मे तुने आसमा दिखाया
दूजे ही पल धरा ..


कुदरत तेरे रुप निराले ..
फिर काहे इंसान है इतराते ...


तू ही सबका मालिक एक ...
दे सबको तू सत्मती हे देव ...!!!!


रेनू मेहरा ....१३.१०.२०११

जिंदगी ....

जिंदगी ....

जिंदगी क्या है ...
एक फलसफा है ...
कभी रंजो गम मे डूबा ...
कभी खुशियों का दरिया है ...

कभी लगे सब पा लिया ...
कभी कुछ न् होने का गम है ...

जीवन जी लिया अपने मन से ...
जो दूजो का न् हो सका ..
वो भी क्या जीवन है ...

सुखी रेत ..कभी मरुस्थल लगे ..
न सावन ..न भादों लगे ...
गहरे दुखो का भंवर लगे ...

सिमरन उस प्रभु का करें ...
वोही सबका आसरा लगे ...

पल मे किस्मत बदल दे जो ..
हर पल इंसान को दरस दे जो ...
वोही एक महामाया है ...

उसी की हम सब पे
छाया है ...
अब तो सिमरन उस प्रभु का है ...

मन मे सिर्फ वोही बसा है ...
हरी ओम ...हरी ओम...

रेनू मेहरा .....१३/१०/११
करके वंदन मै तेरा
शीश झुकाए बैठी हूँ ..
हो दरस तेरे हे प्रभु
ये आस लगाय बैठी हूँ ..
यूँ तो है तू
हर पल मुझमे ही ...
देखू तुझे मै कण-२ मे भी .,
महसूस करू अपने भीतर
है मेरे विचारों मे तू ही ...
सदा रहना साथ मेरे ...
देना संबल हमेश यु ही ...
हरी ओम ...हरी ओम ...
रेनू ...१७.१०.२०११
ज़िदगी की उलझनों को सुलझा रहे हैं ..
कभी हम उसमे .....
कभी वो हम मे ..
उलझते जा रहें हैं ...


वक्त का पहिया कुछ ऐसा घुमा ...
के सब उसी संग घुमे जा रहे हैं ....


कोई कहता की शोहरत की चाह होगी
नए नए रंग दिखला रहे हैं ...


ये वक्त का तकाजा है प्यारे ...
वर्ना ज़िदगी तो सभी जिए जा रहे हैं ...


जो कर सको तो भला करना ..
न् किसी का बुरा करना ...


ये वक्त आज तेरा है ...
तो कल ये मेरा होगा ...


किस करवट ऊंट बैठ जाए ...
अब तो ये देखना होगा ...


........
करके रिश्तों का क़त्ल ...
वो खुश कैसे हैं ...


दम घोंट दिया ...
सांस वो कैसे ले लेते हैं ...


हवाओ मे नहीं बु आती ...
उन्हें रिश्तों के मर जाने की ...


ऐसे कैसे लोग दुनिया मे ...
खुशी खुशी जी लेते हैं ....???


न् रिश्ते यु बनाया कीजे ..
के अपनों की दरकार हो ...


न सपने यु सजाया कीजे ...
के दिल को उससे प्यार हो ...


न नौबत ऐसे आये ...
के मार दिए जाओ...


सिर्फ बनावट की दुनिया है ...
उसी मे जिए जाओ ...


रेनू मेहरा ..१९.१०.२०११


तेरा वजूद भरमाता है ...
तू न होके भी ,
होने का भ्रम करवाता है ...


तेरे ख़याल से जो
उभर पाये हम तो ...
फिर खुद के
होने का भ्रम  हो जाता है ...


११.११.११.

न दोस्ती भली न दुश्मनी किसी कि
अपने मे ही जीया करो ....


ले प्रभु का नाम ...
बस उस मे ही रमा करो ..


११.११.११ .


वक्त के साथ वो आगे बढ़ चले ..
समझदार कहलाते हैं ...


हम ही न बदल पाये खुद को ...
नादान कहें जाते हैं ...


१२.११.११


वक्त के साथ ...
हालात बदलते देखे ...


मौसम की तरह ...
इंसान बदलते देखे ...


रिश्तों को देखा नासूर बनते हुए ...
आँखों से लहू बहते देखे....


१२.११.११



.............एक पल न बीता ऐसा .....
.............जब यादो से जुदा हुए हो ...


..............दिल आज भी सोचकर तुम्हे...
..............जार जार रोया है ...


             रेनू ...
फेस बुक ...



है निराली सुहानी
ये जगह
लगे घर कभी ..
कभी लगे खाली 
ये जगह ...


मिलते दोस्त यहाँ 
कितने ही
कुछ होते खास ..
कुछ होते दिल
के करीब भी ...


कोई बहन है बनाता ..
कोई भाई बन जाता ...
कोई दोस्त तो
कोई ताऊ कहलाता ...


हर रूप देखा यहाँ ..
हर रंग देखा ...


लोगो के जीने का
भी ढंग देखा ...


कोई इतना करीब आता
जीने का अंदाज सीखाता


कभी कोई गम ऐसा दे जाता
के आँखों मे आंसू भर जाता ...


करके कटाक्ष  अपनी
रचनाओं मे लोगो की
वाह वाही पाता....


अजीब से रिश्ते उलझते देखे...
दोस्त भी दुश्मन बनते देखे ...


डर लगता है कई बार
के न हो फिर कोई दोस्त के
भेष मे दुश्मन ...


एक शख्स बदल देता है ..
लोगो के जीने का ढंग ....


बहुत अच्छी भी है 
ये जगह
तो खराब भी लगे ...
पर क्या करे ..


फिर भी दोस्त है यहाँ
जिनसे जीने की भी 
राह मिले ...


२२.११.११.

बनके खुश्बु हवाओ मे जो फैली थी सुगंध ..
आज वो आँखों मे जलन  का एहसास कराती है ..


जिन रिश्तों मे थी मिठास गुड की ...
आज कसेला सा स्वाद लिए आती है ...


अपने को ऊँचा रखने की  जिद ..
किसी और को छोटा किये जाती है ...


दामन अपना बचाने को ...
किसी और के दामन मे कीच
उछाली जाती है ....




रेनू ३/११/११


दोस्ती को माना था खुदा ...
हर रिश्ते से होके जुदा ...
सोचते थे कि किस्मत वाले हैं ..
जो ऐसे दोस्त हमने पाले हैं ...


ऊँचे खवाब दिखाकर गए ...
रौशनी से अंधेरो मे बिठा कर गए ...
एक एक कर सब साथ छूटे ....
निकले क्या सभी के सब झूठे ....?


नहीं कमी है हम मे ही ..
अब ये ही माना है ..
सोचा है के न दोस्त अब बनाए ..
यही बस अब अपना फ़साना है ...


३/११/२०११


सोच बैठे ..
के हम भी हुए अब खास ....
उड़ने लगे पंख पसार ...


अचानक से एक तूफ़ान आया ...
दूर बहा ले गया आंधी संग ..


टूटे मेरे पंख ...
अब न उड़ सकेंगे कभी ...


वक्त के हाथो ले लिया
ये जिंदगी भर का गम ...


रेनू ....
३.११.११.





.......जिंदगी लाई है भरके खुशियाँ दामन मे हजार ....


........कुछ छटक गई ...कुछ बाकी हैं ......


          ८.११.२०११


....................तुझे पाया तो लगा सारा जहान मेरा है ....


...................जो नही है पास तो सब अजनबी से क्यूँ लगने लगे ......


                    रेनू ...०८/११/२०११










हो हबीब तो रकीब बन न जाना ...
देख जमाने की चाल तूम बदल न जाना ....


आएँगी आंधियाँ बहुत ...
छायेगा अँधेरा भी ....


उसकी आड मे तुम
अपना चेहरा बदल न जाना ...


रेनू ...८.११.११





























..........फिसल के जो लम्हे
..........बह गए रेत की मानिंद ....
..........जाने किस मोड पे ....
..........वक्त ठहर जाए ....
..........उम्र का वो दौर बस आने को है
..........जिस मोड पर शाम ढल जाए ....


............०८/११/११



































............सिला मुझे यूँ दोस्ती का मिला ...
....................के पास होके वो दूर हो गए ...
...........न थी तमन्ना के दूर जाए वो ...
....................क्या हुई खता के मजबूर हो गए ...















































































                                   दो कदम साथ न चल पाये जो
                                         वो कैसा हमकदम होगा ...


                                           जिस राह मे हमराही नहीं 
                                                  कैसा वो सफर होगा 





































   


  जिंदगी की किताब कुछ
     इस कदर खुल गई ...


                    पन्ने कुछ उड़ गए ...
                     कुछ कोरी रह गई ....


                        ११/११/११



























नभ नील गगन सुंदर है जग
सुंदर है ये मेरी धरा ....


प्रकृति ने फैलाई है
चहुँ और अद्भुत छटा ...


मुख मन तन अंतर सुंदर
जो बन पाये मानव का


स्वर्ग यही है ...स्वर्ग यही है ...
कहें सब लोग ...


"ये मेरी धरा ".....


११/११/११



















है रिश्ते बड़े नाजुक ..
रखिये इन्हें संभाल के ...


ये वो डोर है ..
जो हलके से छूट जाती है ...


जो पकड़ो फिर तो
हाथ नहीं आती ...


दूर और दूर ....
कच्ची हुई जाती है ....





















Monday, August 8, 2011

मजाक .....




चंद आंसू कुछ उदासी, 
चेहरे की फीकी मुस्कान 
सच नहीं थी क्योंकि 
हो न पाई थी पहचान ..

जब उसने मुझे बुलाया था ...
नहीं नहीं ..
मुझे अपने आप से भुलाया था ...
हम भी तमाम आशाओ को लेकर ..
कह गये उन पर बहुत कुछ .... 
जो कल तक उसने भी स्वीकारा था .

एक सच्चे दोस्त का 
मात्र प्यार भरा कल्पना का कागज़ ..
रोंदा गया था वक्त के पहिये के नीचे ...

कर्तव्य विमुढ मन लिए 
नीरस मन के साथ ..
चल पड़ा था अँधेरी राहों में ...

जब आँख थी गीली ...
तब उसने कहे थे वो शब्द  ..
 जो अमृत बनकर 
घुल गए थे मन आत्मा में ..

मै रह गया था एकदम अवाक  !!! 
मन खुशी से था प्रफुल्लित .....
पर अगले ही क्षण गिरी थी बिजली .....
जब उसने कहा मैंने तो किया था 


सिर्फ एक मजाक ....!!

...मजाक !!!





दोस्ती .....


याद आ  गए वो बीते दिन ..
वो सुंदर संग और हसीं पलछिन ...

याद आते है वो सभी दोस्त ..
जो न रहते थे कभी एक दूजे के बिन ...

आओ फिर से मिल जाएँ .....
फिर एक नई दुनिया बसाये ...

हो जहाँ हर पल ख़ुशी का आलम ....
गूंजे हंसी ठट्ठा ..और भूले सभी गम ..

जिसमे हरेक की भावनाओं  का हो समुंदर ..
प्यार, श्रधा, विश्वास और दोस्ती का रहे हमेशा मंजर ..

दोस्तों के बिना अधूरी है जिंदगी ...
समझो तो सब कुछ है दोस्ती ....
न समझो तो कोरी है दोस्ती ..

गर समझ गए तो आ जाओ फिर से ..
ये पल जो जा रहा है .....
नहीं आएगा फिर से .....

न रहे मलाल की न मिले दोस्तों से ....
कुछ  पल तो बिता दिए बगैर उनके ....
अब बस  रह गए......
सिर्फ कुछ पल ज़िन्दगी के.....

(मित्रता दिवस पर मित्रों को भेंट ...)...

रेनू मेहरा  ८/८/२०११