Wednesday, July 27, 2011

सखी ...


बहुत याद आ रही है तू प्यारी सखी 
कैसे भूली तू मुझको बता री सखी ...

कितना हसीं था न वो मासूम  बचपन हमारा ...
तितलियों के पीछे वो भगना-भागना  हमारा ..

चुरा के जो अमरुद तुने खिलाए ..
आज हमको वो सब बहुत याद आये ...

तेरा वो चुपके से घर पर आ जाना ..
माँ को बहला कर .मुझे लेके जाना ..

संग खूब वो मस्ती भरे दिन बिताए ...
आज हमको वो सब बहुत याद आये ...

जो मै होती ,  तो होती तू भी उदास ...
संग मेरे तेरी भी आँखों में आंसू जो  आये ...

आज हमको वो सब बहुत याद आये ...

कॉलेज में जब सहमी सी  जाती ...
पकड़ हाथ मेरा तू हिम्मत दिलाती ..

जो संग थी तू तो डर नहीं था कोई ...
आज फिर से अकेली खड़ी हू रोई ...

तेरे यादो के साये मुझे हैं रुलाये ..
आज हमको वो सब बहुत याद आये ...

तेरी यादे है अब मेरे पास बाकी 
वो हसींन  पल और वो हंसी खिलखिलाती ...

तू जहाँ भी रहे बस यही है  दुआ मेरी ..
याद रखना मुझे अपनी यादो में कहीं ...

न भुलाना कभी अपने मन से मुझे 
तू हमेशा रहेगी खुशबु बनके मेरी ...


(मेरी प्यारी सखी मीरा  के नाम ...)
---रेनू मेहरा ....

Monday, July 25, 2011

याद



फिर तेरी याद चली आयी है ..
वो तेरे संग हंसना , मुस्कुराना , 

नगे पग बारिशो में दौड़ जाना , 
तेरा लपककर हाथ  पकड लेना , 
और लटो  से बूंदों का टपटपाना , 

दूर तलक हाथ में लिए हाथ ..
सड़क पर निकल जाना ....

याद आ रहा है आज वो सब ....
मंजर हंसी यादो का ..

सफर  जो रह गया अधूरा 
तेरे कहे वो शब्द ...
आज भी मेरे कानो में गूंजते हैं ..

"नहीं तोड़ेंगे ये दोस्ती ...
चाहे हम टूट जाएँ ..".

पर आज्  टूटे हुए हैं मन  .
और ये दोस्ती भी ...
कहाँ गुम हो गए सब ..
कोई दीखता भी नहीं ...

लौट  आओ फिर से वापिस ...
के एक हो जाएँ सब ...

रहें मिल जुल के ...
रहते थे पहले कभी ....

आओ वापस आ जाओ ...

---रेनू मेहरा ...

इन्तजार .....


तुम क्यूँ  नहीं हो आज  पास मेरे ...?
जो रहते थे कभी बनके साया मेरे ...

कभी जो फंस जाती थी....
गहरे दुःख के सागर में ....
तुम्ही तो बढ़ाते थे वो हाथ...
बनके सरमाया मेरे ....

चलने का होंसला दिया ....
तुमने ही हर कदम मुझे ..
पग पग चलना सीखाया  
जैसे किसी अबोध को तुमने ...

कितना सकूँ था तुम्हारे संग चलना ..
न डर था , न कोई फ़िक्र......

पर आज खड़ी हूँ  अनजानी राह  में...
अकेली ...नितांत अकेली ...

तुम पता नहीं कहाँ गए ....?
क्यूँ हाथ छुडा कर निकल गए ..
इन अनजानी   सुनी राहों में ...
उबड खाबड ,कच्ची  पगडंडियों में....

एक आवाज तो आती है ....

हो तुम यही कहीं ..आस पास ...
पर नजर नहीं आते ...

शयद आना नहीं चाहते ..

पर मै वही खड़ी हूँ ...
तुम्हारे इन्तजार में ...

यकीं है की तुम आओगे ...
और फिर से पकड मेरा हाथ ....
मुझे आगे ले जाओगे ......
संग जीवन की डगर में ....

---रेनू मेहरा ---

Sunday, July 17, 2011

उल्फत ...

ले आया वक्त फिर उन्ही राहों पर .
दौर ऐ गर्दिश  अपना रंग दिखलाने  लगे ...
तुमने भी साथ छोड़ा मेरा ....
हम ख़ाक मे जाने लगे ....


न सोचा था की एक दिन ..
ये आलम होगा अपना ...
हम तो अपनी ही  लाश पर 
कैसे सर नवाने लगे ....


गर जान पाते की यु उल्फत होगी ...
तो  तुमसे न दिल लगाने की जुरत होती ..

रह लेते हम युही बेजार से ...
पर दिल को सताने की न हिम्मत होती ...


न उनको होता इश्क  हमसे ..
और न ही हमें उनसे मोहब्बत  होती ...

गर्देशे दौर मे जमाने को  क्या कहे ..
जब हमसाया ही बेमुरव्वत निकला ...


अब तो जी रहे है न मरते हम ...
अपनी ही लाश को ढोते फिरते हम ..
न रूह रही बाकी जिस्म में ...
और न ही जान अब बाकी  है ...

सोच रहे की क्या करें अब ...
अब कौन  सा इम्तहान बाकी है ....

---रेनू मेहरा --

Friday, July 1, 2011

नन्हा दिल ....


न तस्वीर है 
ना आवाज है .....

अब क्या करें 
कुछ भी नहीं पास है ....

तड़प रहे है हम तो 
उनकी जुस्तजू मे......

और वो है की बे ... खयालात हैं 

कैसे बदल जाते  है रिश्ते
एक ही  पल में  रिसते..

दूजे पल का पता नहीं 
और उम्र भर के किस्से ..

कहते थे की  दुनिया वालो से 
टकरा जायेंगे हर  हद तक ....

जब मौका आया वो पलटे  इस कदर..
जैसे न  थी उन्हें  कोई खबर ....

दुनिया बनायीं तुने ऐ उपर  वाले .. 
सुंदर जिस्म और दिमाग दिया......

जज्बातों से खेलने का भी  तुने ही इख्तियार दिया 

एक नन्हा सा दिल जो दिया है 
गम के लिए क्या वो काफी है ..???

इस नन्हे से दिल में ..
"खुशिया"..   भी तो  समानी बाकी है.......


---रेनू मेहरा