Thursday, December 15, 2011

पीड़ा ...




मेरी खामोशियाँ अब डसने लगी है 
जो चहकने  को आतुर थी ..
वो आवाज खामोश है ..

ये होंठ अब नहीं हँसते ..
मुस्कुराना भुल गए है .
कंपन है इनमे ...
आवाज खो गई कहीं ..

क्या लौटा पाओगे तुम 
वो हंसी मेरे चेहरे पे ..
वो खुशी  मेरी आँखों मे ...

अब यहाँ सिर्फ दर्द, पीड़ा है 
न भुल सकने की  कसक ..

हाथो की रेखाये  मिटने लगी 
जिनमे लकीरे थी 
अनंत उत्साह ,उल्लास की ...
जिंदगी जीने की  उमग ..

अब सिर्फ गहरी उदासी है ..
एक इन्तजार ..
जो कभी खतम न हो ..
शायद ..!!!!

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर और भावुक प्रस्तुति रेनू जी...

    ReplyDelete
  2. intzaar main ek hi maza hai ,
    usko khone se dar nhi lagta..

    ......bohot achha likha hai di...

    ReplyDelete
  3. आपको पसंद आई ...शुक्रिया विद्या जी ...

    ReplyDelete
  4. इन्तजार मे एक अलग ही मजा है ..
    उसको खोने का डर जो नहीं उसमे ...
    सच कहा ...बहुत शुक्रिया ओशीन ...

    ReplyDelete