Thursday, August 4, 2011

स्याही ...


लिखने की सोची एक  प्रेम पाती ..
सोचा पढवा उंगी  तुम्हे एक दिन ..
तुम उसमे भरोगे  अपनी चाहत के रंग ..
और बिखेर दोगे  खुशबु वफ़ा की  ..

ऐसी स्याही बनेगी जो लिखेगी
हमारी वफ़ा की कहानी ..
पर ये क्या हुआ ..
वो दवात ही उल्ट गई ..
बिखर गई स्याही ..


कलम सुखी पड़ी है ..
दवात  टूटी पड़ी है ...
कागज़ वो प्रेम का ..
कोरा  का कोरा  ही रह गया है..

तुम्हे तो कोई और रंग चढ़ने लगा है ..
तूम रंगने लगे हो उस के रंग में ...
जिसके लिए झूट बोला गया है ...
सच्चाई  की कसमे खाई थी जिसकी
आज वो ही शक्स् झूटी कसमे खाने लगा है ..

मन बावला हो रहा है
कि ये सब क्या हो रहा है ...

क्यूँ मेरा कागज कोरा रह गया है ..
क्यूँ वो स्याही न बन पाई .
जिसमें तुम्हारी वफाओ का रंग चढ़ा है ..

--रेनू --- 
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2 comments:

  1. Kya khoob likha hai Renu...num hai ankhe sun kar daasta tumhari..kahe kya ab hum yai to hai dastur duniya ka ...milti nahi wafa janha ho isiki umeed.
    kar lo aab to apne aap se pyar...yanhi hai jindagi ka ab uphar..

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  2. i like it..and i wish to read many more like this..

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