Monday, May 16, 2011

अन्तर्द्वंद ......


जब मौका आया तुमको टटोला ...
तुम नहीं थे वो जो कहते रहे ..

मन से सच माना था जिन्हें ..
आज वो कितने बदल गए ..

इन बनते बिगड़ते रिश्तो में 
किस पर करें विश्वास ....


जिस पर भी किया धोखा ही  मिला  
उम्मीद का दामन  सा  छूट गया ...

ये जिंदगी यूँ ही  गुजरती जायेगी ..
बिन पतवार के माझी की  नैया तो  डूब जायेगी .. 


दोस्ती नही कोई ..रिश्ता भी नही कोई ..
किस्मत से सब यहाँ  मिलते हैं ..


दूर जाना है  कही सबसे  दूर ..
सब बेमानी से यहाँ  लगते हैं ..

स्वार्थ से लबरेज  दुनिया है यहाँ  ..
आज नही तो कल गुमान होगा सबको ..
मेरी तरफ सब टूट बिखर जायेंगे ...

निराशा से भरा लगता होगा ये कहना 
पर कहीं न कही हरेक के भीतर ये पीड़ा है ..

टटोलो सब अपने भीतर अपने  को ...
सब साफ़ दीखने लगेगा ...
मन में उठते हुए तूफ़ान ...   "अंतर्द्वंद " को ....

---रेनू मेहरा ----

2 comments:

  1. ब्लागिग मे आपका स्वागत है रेनू जी। आज के प्रक्षेप मे सुंदर चित्रण किया है आपने भावो का .... शुभकामनाए और आशा ही नही अपितु विश्वास भी है कि आगे और सुंदर रचनाओ को पढ़ने का मौका मिलेगा यहाँ।

    ReplyDelete
  2. शुभकामनायो के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया प्रति जी ....
    आपकी आशाओ मे खरी उतर पाऊं ...कोशिश रहेगी ..सादर ..

    ReplyDelete