फकत दो रोटी का सवाल है ..
ये जिन्दगी भी कितनी बदहाल है..
सड़क किनारे जिंदगी पड़ी है लावारिस ..
और ऊँची इमारतो में कमरे बेमिसाल है... .
फटे हाल गुजर जाती है जिंदगी
एक एक बूंद पानी को तरसती ..
न कोई रहगुजर न कोई रहनुमा है
फकत दो रोटी का गुमान है ......
काश के कोई फ़रिश्ता आये
इन सुनी अंखियों में आशा लाये .
भरे इनकी भी गागर सागर से ...
और कोई मजलूम भूखा न सो पाए ..
हरेक के तन में कपडा हो ...
सर पे एक छत हो .....
हो इन आँखों में भी सपने
न कोई हो भूखा , न हो मजबुर ...
चारो और हो सुकून ही सुकून ..
क्या ऐसा हो पायेगा ..
हर वक़्त मन में सवाल है
बस फकत दो रोटी का सवाल है ....
जिंदगी कितनी तंगहाल है ....
* * रेनू मेंहरा * *
पापी पेट का सवाल है .... भूख गरीबी का अहसास। रोटी, कपड़ा और मकान आम आदमी की जरुरत है जो की उनसे डोर ही रहती है। उम्दा रेणु जी
ReplyDeleteशुक्रिया प्रति जी ..सच ही कहा आपने ...इंसान की प्राथमिक और मूलभूत आवश्कताये ही पूर्ण नहीं हो पाती ..उसके लिए जिंदगी काटना असंभव हो जाता है ....क्यूंकि गरीबी एक अभिशाप है ...
ReplyDeleteरेनू जी, आपके इस ब्लॉग ने मुझे मार्मिक सा कर दिया है . यह एक ज्वलंत विषय है, लेकिन कितने ऐसे लोग है जो कि इस दिशा मै सोचते है . अतुल्य भारत की इस गाथा मै मुझे उन गरीबो की फिर से याद अ रही है जो कि दो जून कि रोटी तक नहीं जूता पाता . यह लेख आपका कई प्रश्न छोड़ जाता है . कृपया लिखते रही हमारा ज्ञान बढता जायेगा . कुछ कर तो नहीं सकते लेकिन एक जागरूकता जरूर फैला सकते है .
ReplyDeleteअनिल जी शुक्रिया ..आपने पसंद किया ..हम यथासंभव इन लोगो के लिए कुछ कर पायें ...वही हमारी ओर से मदद होगी ...ओर अन्यों को प्रेरित करना भी इस ओर अच्छा प्रयास होगा ...सादर
ReplyDeleteपूरी कविता लाजवाब ! बहुत बधाई |
ReplyDeleteसड़क किनारे जिंदगी पड़ी है लावारिस ..
और ऊँची इमारतो में कमरे बेमिसाल है... .
रेनू जी सुन्दर सलोने ब्लॉग के लिए अपार शुभ कामनाएं...
ReplyDeleteफकत दो रोटी का सवाल है ..
ReplyDeleteये जिन्दगी भी कितनी बदहाल है..
सड़क किनारे जिंदगी पड़ी है लावारिस ..
और ऊँची इमारतो में कमरे बेमिसाल है... .
मन में कई अनुत्तरित प्रश्न हैं....बहुत ही मार्मिक शसक्त अभिव्यक्ति
@विश्गाथा, श्री प्रकाश डिमरी जी एवं नूतन जी सादर आभार ...नूतन जी ब्लॉग भी मेरा ही है और बाकी तो मेरी जानकारी आपके पास है ही ..सादर ...
ReplyDeletebahut achi kavita ha
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