Monday, July 25, 2011

इन्तजार .....


तुम क्यूँ  नहीं हो आज  पास मेरे ...?
जो रहते थे कभी बनके साया मेरे ...

कभी जो फंस जाती थी....
गहरे दुःख के सागर में ....
तुम्ही तो बढ़ाते थे वो हाथ...
बनके सरमाया मेरे ....

चलने का होंसला दिया ....
तुमने ही हर कदम मुझे ..
पग पग चलना सीखाया  
जैसे किसी अबोध को तुमने ...

कितना सकूँ था तुम्हारे संग चलना ..
न डर था , न कोई फ़िक्र......

पर आज खड़ी हूँ  अनजानी राह  में...
अकेली ...नितांत अकेली ...

तुम पता नहीं कहाँ गए ....?
क्यूँ हाथ छुडा कर निकल गए ..
इन अनजानी   सुनी राहों में ...
उबड खाबड ,कच्ची  पगडंडियों में....

एक आवाज तो आती है ....

हो तुम यही कहीं ..आस पास ...
पर नजर नहीं आते ...

शयद आना नहीं चाहते ..

पर मै वही खड़ी हूँ ...
तुम्हारे इन्तजार में ...

यकीं है की तुम आओगे ...
और फिर से पकड मेरा हाथ ....
मुझे आगे ले जाओगे ......
संग जीवन की डगर में ....

---रेनू मेहरा ---

No comments:

Post a Comment