दोस्ती को माना था खुदा ...
हर रिश्ते से होके जुदा ...
सोचते थे कि किस्मत वाले हैं ..
जो ऐसे दोस्त हमने पाले हैं ...
ऊँचे खवाब दिखाकर गए ...
रौशनी से अंधेरो मे बिठा कर गए ...
एक एक कर सब साथ छूटे ....
निकले क्या सभी के सब झूठे ....?
नहीं कमी है हम मे ही ..
अब ये ही माना है ..
सोचा है के न दोस्त अब बनाए ..
यही बस अब अपना फ़साना है ...
३/११/२०११
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