अंतर्मन....आत्मा की आवाज .....

मन चंचल होता है ..कभी यहाँ ..कभी वहां ....एक पल में आसमान पर ..दूजे पल धरातल पर ....इस मन के क्या कहे ....मन तो मन है ...आओ इसके रंगों में डूब जाएँ ...देखे कितने रंग दिखलाता है .....

Wednesday, November 23, 2011


क्युँ प्रेम में सदा रुसवाई है.....
क्युँ मिलती वफा को बेवफाई है..
क्युँ दिल लगाकर दिल्लगी होती....
क्युँ नही प्रेम की मँजिल होती......




रेनु....२२.८.११
Posted by Renu Mehra at 2:44 AM
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