तेरे शहर मे आने की कीमत ये चुकाई ......
दोस्तो को गँवाया हर शय पे मात खाई.......
हर दर तेरा अंजान बना.....जो था मेरी खातिर......|
नई दीवारे लगाकर तुने पहचान छुपाई......
करते थे जिस पे रशक ....वही ले डुबे हमे आज .....
हर बात पे किया शक , कई तोहमते लगाई......
बन अनजान खुश है वो गैरो की महफ़िल मे ..
हमने तो इन्तजार मे शमा रात भर जलाई ...
वक्त की डाल से टुटा हुआ लम्हा हूँ आज मै ..
अब सुख कर चरागे रौशनी है जलाई ....
या खुदा रहम कर....तेरी बस्ती के लोगो पर.....
अंजान जान मुआफ कर........
दुहाई है दुहाई.......
रेनु मेहरा ....<3<3<3
वाह रेनू जी ...बेहतरीन गज़ल...
ReplyDeletewaaahhhh nice....poem....
ReplyDeleteधन्यवाद विद्या जी ...
ReplyDeleteबहुत आभार ओशीन ..कि तुम्हे पसंद आई ..
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